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हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरी राष्ट्रपति बने और उनके महान कार्य के लिए उन्हें भारतीय इतिहास के पन्नो में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है. वह एक ऐसे शिक्षक, समाज सुधारक, दार्शनिक, दूरदर्शी थे। जीने स्वतंत्रता के समय महान विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। जिन्होंने पूरे विश्व को भारतीय दर्शनिक शास्त्र से अवगत करवाया।
वे विवेकानंद स्वामी और वीर सावरकर को अपना आदर्श मानते थे। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहां करते थे देश की शिक्षा राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और देश के भविष्य को नवीन शिक्षा के द्वारा मजबूत कर सकती है। और आज भी इनके जन्म स्थल को एक दर्शन पवित्र स्थल के रूप में है।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi)
संक्षिप्त परिचय
नाम | डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
जन्म तिथि | 5 सितंबर 1888 |
जन्म स्थान | भारत के तमिलनाडु के तुर्माणी ग्राम |
शिक्षक दिवस कब से मनाया जा रहा है | 5 सितंबर 1962 से |
कार्य | भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति |
प्रचलित होने का कारण | एक सफल शिक्षक और सफल राष्ट्रपति |
शिक्षा | M.A in physics |
पत्नी | शिवमूक |
मृत्यू | 13 अप्रैल 1975 |
सम्मान | 1975 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। |
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जन्म और प्रारंभिक जीवन (Doctor Sarvepalli Radhakrishnan Birth and Early life)
डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु राज्य के एक छोटे से गांव तिरुमनी ग्राम में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता जी का नाम सर्वपल्ली वीरास्वमी जो एक बहुत बड़े विद्वान ब्राह्मण थे। उनके पिता राजस्व विभाग में कर्मचारी थे। उन पर एक बहुत बड़े परिवार की पालन पोषण की जिम्मेदारियां थी।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन कुल पांच भाई और एक बहन थी और सभी भाइयों बहनों में उनका स्थान दूसरा था, उनके माता जी का नाम सीताम्मा था, सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिताजी परिवार को चलाने के लिए बहुत कड़ी मेहनत करते थे। राधाकृष्णन का पूर्वज पहले कभी सर्वपल्ली नाम के एक गांव में रहते थे और उनके पूर्वज ने 18 वीं शताब्दी के मध्य में तिरुमनी ग्राम मैं आकर बस गए। तभी से उनके पूर्वजों ने अपने नाम के सर्वेपल्ली का टाइटल लगाने लगे।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षा (Sarvepalli Radhakrishnan education)
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बचपन तिरुमनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों और व्यतीत हुआ है। और 8 वर्ष तक तिरुमनी में ही रहे। 1896-1900 के मध्य उनके पिता ने उनका एडमिशन क्रिश्चियन कमिश्नर संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में कराए। फिर आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें वेल्लूर में 4 साल रहकर पूरी की। तत्पश्चात उन्होंने क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से अपनी पढ़ाई पूरी की.
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12 साल की उम्र में ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन बाइबल के इंर्पोटेंट अंश आद कर लिए थे. इसके लिए इन्हे विशिष्ट योग्यता भी मिला था. विवेकानंद स्वामी और वीर सावरकर एनी जैसे कई महान विचारक का अध्ययन किया. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 1902 में मैट्रिक की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास की और उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली. तत्पश्चात 1905 में उन्होंने कला संकाय परीक्षा प्रथम स्थान से उत्तीर्ण हुए.जिसमें उन्होंने मनोविज्ञान, इतिहास और गणित विषयों में उच्च अंक प्राप्त किए थे.इसके लिए उन्हें क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास ने उन्हें छात्रवृत्ति भी दिया.
1909 में दर्शनशास्त्र से उन्होंने कला के स्नातक परीक्षा भी पास किए. उच्च शिक्षा ग्रहण करने के दौरान वे अपने निजी खर्च के लिए वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम भी करते रहे. 1960 में कला स्नातक में प्रथम श्रेणी प्राप्त किए और दर्शनशास्त्र की विशिष्ट योगिता प्राप्त किए. और 1960 में A.M. की उपाधि प्राप्त की लिए उन्होंने एक शोध पत्र लिखा. और M.A. की उपाधि प्राप्त की. इसके उन्होंने अपने रुचि पूर्वक वेद, उपनिषदों, हिंदी और संस्कृत भाषाओं का अध्ययन किए।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह (Sarvpalli Radhakrishnan marriage)
8 मई 1903 में कोसर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह उनके दूर की चचेरी बहन सिवाकुमी से शादी हुई. शादी के वक्त इनका उम्र 16 साल था और उनकी पत्नी सिवकमु का उम्र 10 साल था. इसीलिए उनकी पत्नी उनके साथ 3 साल बाद से साथ रहने लगी. उनकी पत्नी ने कोई पारंपरिक रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, लेकिन तेलुगु भाषा में उनकी काफी अच्छी पकड़ थी और वे हिंदी, अंग्रेजी भाषा में पढ़ लिख सकती थी. 1908 में उन्हें संतान के रूप में एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिनका नाम उन्होंने सुमित्रा रखा था, इसी तरह से उन्हें कोई 5 बेटी और 1 बेटा हुआ. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के बेटे का नाम सर्वपल्ली गोपाल था. जो भारत के महान इतिहासकारों में से एक थे. और 1956 में उनकी पत्नी सिवकमु का निधन हो गया।
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डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन केरियर(Sarvepalli Radhakrishnan career)
सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को 19 सालों के उम्र में मद्रास के प्रेसिडेंटसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र का लेक्चरर बने. 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक शिक्षक बनायााा गया. 1918 में उन्हें मैसूर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बनाया गया था. कुछ दिन बाद में इंग्लैंड के विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भारतीय दर्शनशास्त्र के शिक्षक बनाया गया. डॉ राधाकृष्णन सर्वप्रथम शिक्षा को महत्व देते थे. इसलिए वह इतना बड़ा विद्वान बने कि शिक्षा के प्रति लगाओ ने उन्हें मजबूत व्यक्ति बना दिया.वे हमेशा कुछ नया सीखने के लिए व्याकुल रहते थे.
जिस कॉलेज में उन्होंने M.A. की डिग्री प्राप्त की थी उसी कॉलेज में उन्हें आप कुलपति बना दिया गया था. किंतु उन्होंने इस कॉलेज को छोड़कर बनारस के विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने, इस समय वे बहुत सारे पुस्तकें भी लिखे थे.
डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन विवेकानंद और वीर सावरकर को अपना आदर्श मानते थे. इनके बारे में उन्होंने बहुत गहराई से राजन कर रखी थे. उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के मदद से पूरे विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से अवगत कराए . वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति केसाथ साथ वे देश की संस्कृति बहुत लगा था।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की राजनीतिक जीवन(Sarvepalli Radhakrishnan political life)
1947 से 1949 तक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के संविधान निर्माणकर्ता के साथ काम करते रहे. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के आजादी के बाद यूनिस्को मैं उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया. भारत के सोवियत संघ में उन्होंने 1949 से 1952 तक राजदूत बने रहे. भारत के आजादी के बाद 13 मई 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया. 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया.
जब वे 13 मई 1962 को ही देश का दूसरा राष्ट्रपति चुने गए. भारत के राष्ट्रपति पद पर थे. डॉ राजेंद्र प्रसाद के तुलना में इनका कार्यकाल काफी कठिनायों से भरा रहा. एक ओर भारत को पाकिस्तान और चीन से युद्ध हो रहा था, जिसमें भारत को चीन से हार का सामना करना पड़ा था. दूसरी और दो प्रधानमंत्री का देहांत भी इन्हीं के समय में हुआ था. 1967 मैं भारत के राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हो गए और वह मद्रास जाकर बस गए।
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डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन मृत्यु (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Death)
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लंबी बीमारी के कारण हुआ था. शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा लोग याद रखेंगे, इसलिए इनके जन्मदिन 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मना कर उनके प्रति लोग सम्मान व्यक्त करते हैं. 1975 में राधाकृष्णन के मरने के बाद अमेरिका के सरकार ने टेम्पलेट पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया था. यह सम्मान धर्म के क्षेत्र के लिए प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को पाने वाले प्रथम गैर ईसाई संप्रदा के व्यक्ति थे. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमेशा खा करते थे, जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन को प्राप्त करना है।
शिक्षक दिवस (teacher’s day)
1962 को हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति और द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितंबर को प्रतिवर्ष शिक्षक दिवस (Teacher’s day) के रूप में मनाया जाने लगा. और इस दिन भारत देश के समस्त प्रतिभाशाली शिक्षकों को प्रदान किया जाता है।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन पुरस्कार (Sarvepalli Radhakrishnan Awards)
1931 नाइट बैचलर / सर की उपाधि
1938 फेलो ऑफ़ दी ब्रिटिश एकेडमी
1954 भारत रत्न
1954 आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स & साइंस (जर्मन)
1961 पीस प्राइज ऑफ़ दी जर्मन बुक ट्रेड
1962 उनका जन्मदिन 5 सितम्बर पर शिक्षक दिवस
1963 ब्रिटिश आर्डर ऑफ़ मेरिट
1968 साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप, पहला व्यक्ति
1975 टेम्प्लेटों प्राइज (मरणोपरांत)
1989 ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से Scholarship की शुरुआत
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की उपलब्धियां(Dr Sarvepalli Radhakrishnan achievement)
1931 से 1936 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रूप में कार्य कर रहे थे.
1946 में एक भारतीय प्रतिनिधि के रूप में यूनेस्को में अपनी उपस्थिति दर्ज की.
1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रधान अध्यापक पद पर रहे.
डॉ राधाकृष्णन 1939 से 1948 तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चांसलर रहे.
1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में चांसलर के रूप में काम कर रहे थे।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन किताबें (Sarvepalli Radhakrishnan Books)
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दर्शनशास्त्री और हिंदी लेखक तो थे साथ ही उन्होंने अंग्रेजी भाषा में 60 से अधिक पुस्तके लिखे थे. इन में से प्रमुख किताबें निम्लिखित हैं.
भारत और चीन
भारत और विश्व
भारत की अंतरात्मा
भारतीय संस्कृति कुछ विचार
भारतीय दर्शन 1
भारतीय दर्शन 2
गौतम बुद्ध जीवन और दर्शन
नवयुवकों से
प्रेरणा पुरुष
स्वतंत्रता और संस्कृति
उपनिषदों का सन्देश
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