Kabir Das Biography in Hindi, Kabir Das ki Jivni, Kabir Das Biography कबीर दास का जीवन परिचय, जन्म, शिक्षा, गुरु, मृत्यु, दोहा, रचनाए
कबीर दास के बारे में पढ़ने के लिए हिंदू, मुस्लिम और सिख तीनों धर्म ग्रंथों में मिलता है,यह एक भक्ति काल के हिंदी भाषा का कवि और समाज सुधारक थे. इनकी मातृभाषा साधुक्कड़ी था. कबीर के दोहे और पदो में हिंदी भाषा की सभी मुख्य वाक्य से रचना किए थे. उन्होंने हिंदी भाषा के साथ साथ ब्रिज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधि, हरियाणवी और हिंदी खड़ी की के भाषाओं में भी कई रचनाएं हैं. वे भक्ति भजन और निर्गुण भक्ति से बहुत प्रभावित थे.
कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Biography in Hindi)
संक्षिप्त परिचय
जन्म:- 1440 ईo (उत्तर प्रदेश, काशी बनारसी क्षेत्र)
पिता का नाम:- नीरू जुलाहे
माता का नाम:- नही ज्ञात
कार्य:- कवि
गुरु:- गुरू रामानंद जी
पत्नी का नाम:- नही ज्ञात
भाषा:- सधुक्कड़ी (मातृभाषा)
ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी (साहित्यि भाषा)
मृत्यु:- 1518 ईo, (मगहर)
कबीर दास का जन्म (Kabir Das’s birth)
कबीरदास का जन्म कब और कहां हुआ था, इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. कबीर के जन्म स्थान के बारे में 3 स्थान की बात आती है पहला मगहर दूसरा काशी और तीसरा आजमगढ़ का बिलहरा गांव. इतिहासकारों को मानना है कि कबीर दास का जन्म काशी (वाराणसी) में हुआ था. यह बात कबीर दास की दोहे की एक पंक्ति से जानने को मिलता है.
काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये
एक पौराणिक प्रचलित कथा के अनुसार कबीर दास का जन्म 1940 ईस्वी को एक गरीब विधवा ब्राह्मणी महिला क्या हुआ था. ऋषि रामानंद जीने अनजाने में उस ब्राह्मणी को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था. विधवा ब्राह्मणी ने संसार के लोग हमें क्या कहेंगे इस कारण से नवजात शिशु को लहरतारा तालाब के पास छोड़ दिया था. इसी कारण कबीर शायद सांसारिक परंपरा को कोसते नजर आते थे.
पौराणिक कथा के अनुसार मुस्लिम परिवार के जुलाहा दंपति नीरू और नीमा ने कबीर दास का पालन पोषण किया था, नीरू को यह शिशु लहरतारा तालव के पास ही मिला था, कबीर दास का असली माता पिता कौन है इनके बारे में वही जानकारी नहीं है, कबीर दास नीरू और नीमा की वास्तविक संतान नहीं थे उन्होंने सिर्फ उनको पालन पोषण किया था
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कबीर दास की शिक्षा (kavir Das Education)
इतिहासकारों का कहना है कि कबीर दास को पढ़ने लिखने में कोई रुचि नहीं था और बचपन में उन्हें बचपन में खेलने का भी कोई शौक नहीं था, गरीब माता-पिता होने के कारण उनकी स्थिति पढ़ाई करने लायक नहीं थी, परिवार को मदद करने के लिए अभी जुलाहा बनकर भिच्छा मांगा करते थे, दिन भर उन्हें भोजन की व्यवस्था करने के लिए दर-दर भटकना पड़ता था इस कारण से कवि ने किताबों की शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाए.
आज हम जिस कबीर दास के दोहे के बारे में पढ़ते रहते हैं, वह दोहा स्वयं कबीर ने नहीं लिखा, बल्कि कबीर दास के शिष्य ने लिखा था. कबीर दास दोहे को बोलते थे और उनका शिष्य कामाख्या और लोई लिखा करते थे. लोई उनके बेटी और सिर्फ दोनों थी,उन्होंने लोन का नाम अपने दोहे में कई बार इस्तेमाल किए हैं.
कबीर दास की गुरु (Kabir Dash’s Guru )
कबीर दास एक ऐसे परिवार से बिलॉन्ग करते थे जहां पर शिक्षा के बारे में कोई भी सोच नहीं सकता था, उस समय रामानंद जी काशी के विद्वान हॉट पंडित थे. उन्होंने कई बार उनके आश्रम के और उनसे मिलने का प्रयत्न किए, पर उस समय जात पात का भी काफी चलन था इसलिए उन्हें वहां से भगा दिया जाता था. और उस समय काशी में पंडितों का ही राज रहता था.
कबीर दास ने 1 दिन देखा कि गुरु रामानंद जी को सुबह 4:00 से 5:00 स्नान करने के लिए घाट पर जाते देखा. उन्होंने उस घाट पर एक बांध लगा दिया और उसका केवल एक भाग खुला छोड़ा था. और वही पर रात को सो गए, जब सुबह गुरु रामानंद जी ने घाट पर आया तो उन्होंने देखा की घाट पर बांध है, और कबीर ने जहां से घाट खुला रखा था रामानंद गुरुजी उसी रास्ते से जा रहे थे और अंधेरे में कबीर जी को नहीं देख पाए और उनके पैर पर चढ़ गये उसी के बाद कबीर के का मुख से राम राम राम निकल पड़ा.
कबीर दास गुरु रामानंद जी को सामने देख कर बेहद ही खुश हो गए,उन्होंने रामानंद जी के चरण पादुका को छूकर आशीर्वाद लिया और इसके बाद राम नाम की भक्ति में बिलिंग हो गए.
कबीर दास का धर्म (Religion of Kabir Das)
कबीर दास ने कहां है एक पद में जीवन जीने का सही तरीका है उनका धर्म है. उनका धर्म नाम हिंदू ना मुस्लिम है और वे सदा धार्मिक रीति-रिवाजों का काफी खिलाफ रहते थे. उन्होंने कई बार धर्म के प्रति क्रूरता और कुप्रथाओं का विरोध किया था. कबीर दास का जन्म सिख धर्म के स्थापना के समकालीन में हुआ था इसीलिए उनका प्रभाव सिख धर्म में भी देखा जाता है. कबीर दास को अपने जीवन में कई बार हिंदू और मुस्लिमों के विरोध जूझना पड़ा था.
कबीर की मृत्यु (Kabir Das Death story)
1518 ईo मैं संत कबीर दास का मृत्यु मगहर में हुआ था. उनके प्रशंसक और अन्याय हिंदू और मुस्लिम दोनों में ही बराबर थे. जब कबीर दास जी की मृत्यु के अंतिम संस्कार पर हिंदू और मुस्लिमों में विवाद छिड़ गया था. मुस्लिम अन्याय का कहना था की उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम रिति रिवाज होना चाहिए और हिंदी आन्याय का कहना था की उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति रिवाज होना चाह. हिन्दू और मुस्लिम विवाद के कारण उनके शव से चादर उड़ गया और उनके शव के पास पैर फुल को हिंदु और मुस्लिमो में आधा आधा बट लिया. और हिंदू अपने तरीका से और मुस्लिम अपने तरीका से अंतिम संस्कार किया. कविर दास की मृत्यु स्थान पर उनकी समृद्धि बना दी गाई.
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कबीर दास के छः प्रमुख उपदेश
- · ईश्वर निराकार है, इनका का कोई आकर नही है. ईश्वर को इधर उधर ढूंढने से नही मिलते वाले मिलने वाले, ईश्वर तो हमारे अंदर ही रहते हैं.
- · गुरु ही शिष्य को सच्चा ज्ञान को हासिल करने का मार्ग दिखा सकते है, और वे ईश्वर से दर्शन करा सकते हैं.
- · बड़े बड़े ग्रंथ और शास्त्रों को पढ़ने से ज्ञान नहीं मिलता, बल्कि अपने अंदर के अंधकार को दूर
- करने और जीवन की व्यवहारिक स्थिति के अनुभव से मिलती है.
- · लहरों के डर से किनारे बैठे रहने से मोती नहीं मिलती. मोती प्राप्त करने के लिए हमें समुद्र में छलांग लगाना पड़ता है तभी हमें मोती हासिल होगी.
- · कोई भी व्यक्ति हमारे साथ कितना खराब व्यवहार क्यों ना करें पर, हमें उसके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए. इससे बात भी नहीं बढ़ती और विरोधी का मन भी बदल सकता है.
कबीर दास के कुछ दोहा
गुरुगोविन्ददोऊखड़े, काकेलागूपाय।
बलिहारीगुरुआपनो, गोविन्ददियोबताय।।
रामनामकेपटतरे, देबेकौंकछुनाहिं।
क्यालेगुरसंतोषिए, हौंसरहीमनमार्र्हि।।
साईं इतना दीजिए, जामें कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहँ, साधु न भूखा जाय।।
पाँचपहरधन्धेगया, तीनपहरगयासोय।
एकप्रहरहरिनामबिनु, मुक्तिकैसेहोय॥
माटी कहे कुम्हार से, तू क्यों रौदे मोय।
इक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौदेंगी तोय ॥
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कबीर दास की रचनाये (Kabir Das’s Poetry)
- अगाध मंगल
- अठपहरा
- अनुराग सागर
- अमर मूल
- अर्जनाम कबीर का
- अलिफ़ नामा
- अक्षर खंड की रमैनी
- आरती कबीर कृत
- अक्षर भेद की रमैनी
- उग्र गीता
- उग्र ज्ञान मूल सिद्धांत- दश भाषा
- कबीर और धर्मंदास की गोष्ठी
- कबीर की वाणी
- कबीर अष्टक
- कबीर गोरख की गोष्ठी
- कबीर की साखी
- कबीर परिचय की साखी
- कर्म कांड की रमैनी
- काया पंजी
- चौका पर की रमैनी
- चौतीसा कबीर का
- छप्पय कबीर का
- जन्म बोध
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- नाम महातम की साखी
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- पुकार कबीर कृत
- बलख की फैज़
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- बीजक
- व्रन्हा निरूपण
- भक्ति के अंग
- भाषो षड चौंतीस
- मुहम्मद बोध
- मगल बोध
- रमैनी
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- शब्द राग गौरी और राग भैरव
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- शब्दावली
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- सननामा
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- साधो को अंग
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- हिंडोरा वा रेखता
- हस मुक्तावालो
- ज्ञान गुदड़ी
- ज्ञान चौतीसी
- ज्ञान सरोदय
- ज्ञान सागर
- ज्ञान सम्बोध
- ज्ञान स्तोश्र