Indus Water Treaty: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना एक समझौता है, जिसे “सिंधु जल संधि” के नाम से जाना जाता है। यह संधि न केवल दो देशों के बीच पानी के वितरण की व्यवस्था करती है, बल्कि यह एक ऐसा अनुबंध भी है जो कई युद्धों और संघर्षों के बावजूद कायम रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि सिंधु जल संधि क्या है, इसका इतिहास, शर्तें, विवाद, और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसकी प्रासंगिकता क्या है।

सिंधु नदी प्रणाली | Indus River System
सिंधु नदी भारत और पाकिस्तान की जीवन रेखा मानी जाती है। यह तिब्बत के मानसरोवर क्षेत्र से निकलती है और जम्मू-कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में बहती है। सिंधु नदी प्रणाली में कुल छह प्रमुख नदियाँ आती हैं:
- सिंधु
- झेलम
- चेनाब
- रावी
- ब्यास
- सतलुज
इनमें से तीन नदियाँ — सिंधु, झेलम और चेनाब — को ‘पश्चिमी नदियाँ’ कहा जाता है, जबकि रावी, ब्यास और सतलुज को ‘पूर्वी नदियाँ’ कहा जाता है।
सिंधु जल संधि का इतिहास | History of Indus Water Treaty
1947 में भारत के विभाजन के बाद सिंधु नदी प्रणाली दो देशों में विभाजित हो गई। पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था बहुत हद तक इन नदियों पर निर्भर थी। वहीं, भारत का नियंत्रण अधिकांश जलस्रोतों पर था, क्योंकि ये नदियाँ भारत में ही उद्गमित होती थीं।
1948 में भारत ने पाकिस्तान की ओर बहने वाली कुछ नहरों का पानी अस्थायी रूप से रोक दिया। इससे पाकिस्तान में संकट खड़ा हो गया और इस विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों को मध्यस्थता की आवश्यकता पड़ी। विश्व बैंक ने इस स्थिति में हस्तक्षेप किया और दोनों देशों के बीच जल बँटवारे की एक स्थायी व्यवस्था बनाने की कोशिश की।
सिंधु जल संधि का समझौता |Agreement of Indus Water Treaty
साल: 19 सितंबर 1960
स्थान: कराची, पाकिस्तान
हस्ताक्षरकर्ता:
- भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
- पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान
- विश्व बैंक के अध्यक्ष यूजीन ब्लैक
यह संधि तीन पक्षीय थी, जिसमें विश्व बैंक ने मध्यस्थता की भूमिका निभाई और वित्तीय सहायता प्रदान की।
सिंधु जल संधि की प्रमुख शर्तें |Key terms of the Indus Water Treaty
- नदियों का विभाजन:
- पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलुज) का पूरा जल भारत को दिया गया।
- पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चेनाब) का जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया, लेकिन भारत को सीमित उपयोग की अनुमति दी गई जैसे सिंचाई, बिजली उत्पादन और घरेलू उपयोग।
- भारत की सीमाएँ:
भारत इन तीन पश्चिमी नदियों पर बड़े जलाशय नहीं बना सकता और न ही जल की दिशा को मोड़ सकता है। - सूचना आदान-प्रदान:
दोनों देशों को प्रत्येक वर्ष जलविज्ञान संबंधी आंकड़े साझा करने होते हैं। - विवाद निवारण प्रणाली:
- तकनीकी मुद्दों पर “स्थायी सिंधु आयोग” (Permanent Indus Commission) चर्चा करता है।
- यदि समाधान न निकले, तो “तटस्थ विशेषज्ञ” नियुक्त किया जाता है।
- गंभीर मामलों में अंतरराष्ट्रीय पंचाट की भूमिका होती है।
सिंधु जल संधि के लाभ | Benefits of Indus Water Treaty
- स्थायित्व और शांति: 1960 से लेकर आज तक यह संधि बनी रही है, चाहे भारत-पाकिस्तान के संबंध कैसे भी रहे हों।
- जल सुरक्षा: दोनों देशों को उनकी जल आवश्यकताओं के अनुसार निश्चित हिस्सेदारी मिली।
- कृषि विकास: पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों के जल के कारण कृषि में स्थिरता मिली, जबकि भारत को पूर्वी नदियों पर नियंत्रण मिला।
सिंधु जल संधि से संबंधित विवाद | Disputes related to Indus Water Treaty
हालाँकि यह संधि एक स्थायी समझौता मानी जाती है, लेकिन समय-समय पर विवाद उत्पन्न होते रहे हैं:
1. बगलीहार बाँध विवाद (जम्मू-कश्मीर)
पाकिस्तान ने दावा किया कि यह बाँध संधि का उल्लंघन करता है। भारत ने तर्क दिया कि बाँध रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट है और संधि के अनुसार है। विवाद सुलझाने के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति हुई, जिन्होंने कुछ तकनीकी बदलावों के साथ भारत को बाँध बनाने की अनुमति दी।
2. किशनगंगा बाँध विवाद
भारत ने झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट शुरू किया। पाकिस्तान ने इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन बताया। अंतरराष्ट्रीय पंचाट ने भारत को प्रोजेक्ट पूरा करने की अनुमति दी, लेकिन कुछ शर्तें लगाईं।
सिंधु जल संधि पर भारत की स्थिति | India’s position on Indus Water Treaty
पिछले कुछ वर्षों में भारत में यह आवाज़ उठने लगी है कि पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद के निरंतर समर्थन के कारण इस संधि की समीक्षा की जानी चाहिए। भारत का यह भी कहना है कि उसने संधि के तहत जो प्रतिबंध लगाए गए हैं, वे उसकी जल जरूरतों को सीमित करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में उड़ी आतंकी हमले के बाद कहा था:
“पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।”
इसके बाद भारत ने पूर्वी नदियों के जल का पूरा उपयोग करने के लिए कदम उठाने शुरू किए, जिनमें नई नहरों और बाँधों की योजना शामिल है।
सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया | Pakistan’s response to the Indus Water Treaty
पाकिस्तान का मानना है कि यह संधि उसके लिए जीवनरेखा है। यदि भारत इस संधि का उल्लंघन करता है या संधि से बाहर निकलता है, तो पाकिस्तान की कृषि और पेयजल व्यवस्था गंभीर संकट में आ सकती है। इसलिए पाकिस्तान इस मुद्दे को बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता है।
क्या सिंधु जल संधि अब भी प्रासंगिक है? | Is the Indus Water Treaty still relevant?
जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या और भारत-पाक संबंधों की जटिलता को देखते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या 1960 की यह संधि आज भी उचित है?
कुछ प्रमुख बिंदु:
- जल की कमी: ग्लेशियरों के पिघलने और वर्षा की अनिश्चितता के कारण अब सिंधु नदी प्रणाली पर दबाव बढ़ा है।
- भारत की विकास जरूरतें: भारत को अपनी ऊर्जा और सिंचाई जरूरतों के लिए पश्चिमी नदियों का अधिक उपयोग करने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
- राजनीतिक दबाव: हर आतंकी घटना के बाद भारत में सिंधु जल संधि को समाप्त करने की माँग उठती है।
क्या भारत सिंधु जल संधि को रद्द कर सकता है? | Can India cancel the Indus Water Treaty?
तकनीकी रूप से भारत संधि से बाहर निकलने के लिए “वियना कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ ट्रीटीज” के तहत कदम उठा सकता है, लेकिन ऐसा करने से कई अंतरराष्ट्रीय जटिलताएँ खड़ी हो सकती हैं। भारत की विश्वसनीयता एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में दांव पर लग सकती है।
निष्कर्ष
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसा समझौता है जिसने दशकों तक दोनों देशों को एक-दूसरे से जोड़े रखा है, वह भी तब जब राजनीतिक और सैन्य संबंध बेहद तनावपूर्ण रहे हों। यह संधि तकनीकी दक्षता, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कूटनीतिक संतुलन का अद्भुत उदाहरण है।