Shrinivas Ramanujan Biography in Hindi,श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी,रामानुजन का गणित में योगदान,जन्म, विवाह, संघर्ष, निधन, Family, career, marriage, wife
भारत के महान गणितज्ञ वैज्ञानिक में से एक है जिन पर सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विश्व गर्व करता है. 33 साल की उम्र में इन्होंने जो किया है शायद कोई वैज्ञानिक इतना ते किया हो. जिन्होंने गणित में कोई औपचारिक शिक्षा नहीं लेने के बावजूद भी उन्होंने गणित में ऐसी3884 परमेय और 120 फॉर्मूला की खोज की है
22 दिसंबर को उनके जन्मदिन के मौके पर नेशनल मैथमेटिक्स डे मनाया जाता हैजिनसे उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो गया. हालही में इन्हीं के सूत्रों को क्रिस्टल–विज्ञान में प्रयुक्त किया गया, और इन्हें सम्मानित करने के लिए रामानुजन जर्नल की स्थापना की हमारे देश का दुर्भाग्य था कि महान वैज्ञानिक 33 साल की उम्र में टीवी बीमारी के कारण उनका निधन हो गया.
श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी (Shrinivas Ramanujan Biography in Hindi)
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म और परिवार (Srinivas Ramanujan birth and family)
श्रीनिवास रामानुजन काजल 22 दिसंबर 887 को तमिलनाडु में कोयंबटूर के एरोड नाम एक छोटे से गांव में एक गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता जी का नाम श्रीनिवास अयंगर जो एक व्यापारी के यहां मुंशी का काम करते थे.
इनके मां कोमलताम्मल जो एक गृहणी थी. रामानुजन जब 1 साल के थे उसी समय उनका परिवार कुंबकोणम में आकर बस गए थे. बचपन में रामानुजन एक सम्मानित बच्चों की तेरा नहीं थे, वे 3 साल का हो गए थे तब तक वह नहीं बोलते थे. इससे उनके ममात-पिता चिंताहोने लगा की कही मेरा बेटा गूंगा तो नहीं है.
श्रीनिवास रामानुजन की शिक्षा (Shrinivas Ramanujan education)
प्रारंभिक शिक्षा के लिए रामानुजन को कुंभकोणम के प्राथमिक विद्यालय में दाखिला कराया गया.पारंपरिक शिक्षा उनका मन नहीं लगता था और ज्यादा समय गणित की पढ़ाई में व्यतीत करते थे. जब उनका उम्र 10 साल का था तब उन्होंने प्राइमरी परीक्षा में जिला टॉपर रहे थे.उ
सके बाद रामानुजन का अगली पढ़ाई के लिए उनका नामांकन उच्च माध्यमिक विद्यालय में कराया गया, यहां से उनको गणित के प्रति और ज्यादा लगाओ हो गया. उनकी स्मरण शक्ति और गणित में कड़ी मेहनत करने का जुनून अलग ही लेवल का था.और कठिन से कठिन गणित के सवालों को चुटकियों में हल कर देते थे. और इस कारण से वे अपने दोस्तों और शिक्षकों मैं बहुत प्रसिद्ध हो गए थे.
1903 ई.सालों में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंक प्राप्त कर पास हुए.इस परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त है करने के कारण इन्हें छात्रवृत्ति मिलने लगी. इनके लगन और मेहनत को देखकर टीचर बहुत प्रभावित हुए.
गणित के प्रति उन्हें इतना लगाव था कि उन्होंने अपने क्लास के गणित के किताब कुछ ही दिनों में सभी सवाल हल कर दीए थे. साथ ही उन्होंने 13 साल के उम्र में S.I.LONLYद्वारा लिखे गए एडवांस ट्रिगोनोमेट्री में उन्होंने महारत हासिल कर ली थी और इसके अलावा और कुछ नए प्रमेय का भी अविष्कार किया.
इन्होंने 15 साल के उम्र शूब्रिज कार (G. S. Carr.) पुस्तके 5000 से भी अधिक प्रमेय को प्रमाणित कर दिए थे.17 साल की उम्र में बरनौली नंबरों की जांच की और 15 अंको तक कांस्टेंट वैल्यू की खोज की.
श्रीनिवास रामानुजन 11th की परीक्षा में कैसे फेल हुए (how srinivasa ramanujan failed in 11th exam)
श्रीनिवास रामानुजन को गणित के प्रति ज्यादा लगाओ के कारण यह अन्य विषयों पर अधिक ध्यान नहीं दिया करते थे और इन्हें गणित का इतना जुनून था की उनका दिल गणित में ही लगे रहते. इसलिए जब 11thका परिक्षा हुआ तब गणित में तो टॉप रहे लेकिन अन्य विषयों में प्राप्तांक ना मिलने के कारण वह फेल हो गये.
और उन्होंने हमेशा साथ में 12वीं के प्राइवेट परीक्षा दी जिसमें वे फिर फेल हो गया। इंटर में फेल होने के कारण सरकार से जो उन्हें छात्रवृत्ति मिल रहा था वह भी बंद हो गया. और इस तरह उनका शिक्षा धीरे धीरे समाप्त हुई और गरीब परिवार से होने के कारण उन्हें काफी दिक्कतों और संघर्ष करना कड़ा.
श्रीनिवास रामानुजन का विवाह(Srinivas Marriage of Ramanujan
1908 में श्रीनिवास रामानुजन के मां ने उनका विवाह जानकी नाम की लड़की से हुआ था. और उस समय इनका उम्र 22 साल था और उनकी पत्नी जानकी का उम्र मात्र 10 साल था तब इन दोनों का शादी हुआ थी. अब परिवार की जिम्मेदारी अब रामानुजन पर आ गया था और काम करने के लिए उन्होंने मद्रास आ गए.
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श्रीनिवास रामानुजन संघर्ष की शुरुआत (Srinivas Ramanujan Beginning of the Struggle)
मद्रास आने के बाद नौकरी के लिए अलग–अलग कंपनियों के गए, पर उच्च शिक्षा ना होने के कारण पूरे हर जगह से निकाल दिया जाता था. और इनकी तबीयत दिनों दिन खराब हो रहा था, इसलिए उन्हें गांव वापस आना पड़ा.
दृढ़संकल्प के प्रति अडिग रहने वाले रामानुजन ने अपना स्वस्थ ठीक होने के बाद एक बार फिर मद्रास नौकरी की तलाश में गए. कुछ दिन तक नौकरी के लिए भटकने के बाद उनका मुलाकात मद्रास के एक डिप्टी कलक्टर रामास्वामी अय्यर , वे भी गणित के बारे विद्वान थे. रामास्वामी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन से काफी प्रभावित हुई.उनके लिए ₹25 प्रति/माह स्कॉलरशिप सरकार के द्वारा दिलाए.
जिससे उन्होंने मद्रास में रहकर गणित का गणित का पहला शोध पत्र “जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी” के द्वारा प्रकाशित हुआ, इसका शीर्षक का नाम था “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण”.इस शोधपत्र से उन्हें काफी सराहना मिली और वह गणित के महान विद्वान के रूप में उन्हें लोग जानने लगे.
फिर उन्होंने 1920 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक कलर की की नौकरी करने लगे. जिसे उन्हे गणित की सोध के लिए उन्हे काफी समय प्राप्त था.
श्रीनिवास रामानुजनका विदेश गमन और प्रोफेसर हार्डी के साथ पत्र व्यावहार ( Shrinivas Ramanujan’s Foreign Trip and Correspondence with Professor Hardy)
अब रामानुजन का शोध धीरे-धीरे आगे बढ़ चुका था पर अब स्थिति ऐसी आ गई थी कि बिना किसी गणितज्ञ वैज्ञानिअक के सहायता के बिना शुद्ध कार्य आगे बढ़ नहीं सकता. रामानुजन ने अपने शुभचिंतक और मित्रों की सहायता से अपने गणित के सूत्र को लंदन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक के पास भेजा पर इससे कोई सहायता नहीं मिली. फिर रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ फार्मूले को प्रोफेसर सेशु अय्यर को दिखाएं. उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हार्डी को भेजना का सलाहदिया.
1913 में हार्डी को एक पत्र लिखा जिसमे उन्होंने अपने द्वारा लिखे गए कुछ प्रमेय की सूची को भी साथ में भेज दिया. प्रोफेसर हार्डी को भी समझ में नहीं आया फिर उन्होंने कुछ गणितज्ञ और अपने शिष्य की मदद ली. ये सब देखकर उन्हें ऐसा लगा की रामानुजन के क्षेत्र का एक दुर्लभ वेक्ती है.
प्रोफेसर हार्डी को ऐसा लगा की रामानुजन के dora kiye gaye रिसर्च को समझने के लिए उनसे मिलना परेगा. इसली हार्डी ने उन्हें लंदन बुला लिया. प्रोफेसर हार्डी और रामानुजन साथ में शोध करना लगे, फिर हार्डी ने उन्हें कैम्ब्रिज आकर शोध करने का सुझाव दिया. पहली बार रामानुजन ने वहां जाने से मना कर दीया. लेकिन प्रोफ़ेसर हार्डी रामानुजन को मनाने में सफल रहे. और हार्डी ने केम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में रामानुजन का रहने का व्यवस्था किया.
यहां से रामानुजन के जर्नी का एक नया युग आरंभ हुआ. हार्डी को रामानुजन की मित्रता काफी फायदेमंद साबित हुआ. श्रीनिवास रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर कई स्वर पत्र प्रकाशित किए और इनके एक विशेष शोध पत्र के लिए कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें बी. ए. की उपाधि दी.
इंग्लैंड में सब कुछ ठीक चल रहा, लेकिन इंग्लैंड की जलवायु रामानुजन के रहन सहन और जीवन शैली के अनुकूल नहीं था जिस कारण से उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा. डॉक्टरों ने जांच करने के बाद बताया कि इन्हें क्षय(T.B.) रोग है. उस समय इस बीमारी का कोई इलाज नहीं था, समय समय रोगी को स्वास्थ्य लाभ के लिए सेनेटोरियम मे सहना पड़ता था.
रॉयल सोसाइटी की सदस्यता
उसके बाद श्रीनिवास रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का हेलो नामित क्या गया. इससे पहले रॉयल सोसाइटी के इतिहास में इतना कम उम्र में रॉयल सोसाइटी का सदस्य अभी तक कोई नहीं बना सका. रॉयल सदस्य बनने के बाद ट्रिनीटी कॉलेज का फिलिस्पर का स्थान पाने वाले भारत का पहला वेक्ती बने.
तरफ से कामयाबी के तरफ बड़े थे और दूसरी तरफ उनका स्वास्थ्य गिरता जा रहा था उन्हें डॉक्टर ने भारत जाने का सुझाव दीया. भारत आने पर उन्हें मद्रास के विश्वविद्यालय में उन्हें एक प्रधानाध्यापक का पद मिला और वे फिर अध्ययन और शोध इस कार्य में लग गए.
श्रीनिवास रामानुजन का मृत्यु (Srinivas Ramanujam death)
भारत आने के बाद भी उनके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ और उनका धीरे धीरे और गंभीर होता गया. अंततः डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया चील का अंतिम समय नजदीक आ गया है, अपनी बीमारी से जुझते जुझते अंत में 26 अप्रैल 1920 को चेटपट (चेन्नई) तमिल नाडु श्रीनिवास रामानुजन ने अपना प्राण त्याग दी. निधन के समय उनका उम्र मात्र 33 वर्ष था, यह महान गणितज्ञ वैज्ञानिक का निधन गणित जगत के अपूर्ण क्षति थी.
श्रीनिवास रामानुजन की महत्वपूर्ण जानकारियां (Information About Srinivasa Ramanujan)
- रामानुजन हमेशा स्कूल में अकेले रहते थे, उनके सहपाठी उन्हें कभी समझ नहीं पाये थे.
- रामानुजन एक गरीब फैमिली से संबंध रखते थे और इसलिए अपने गणित का परिणाम देखने के लिए पेपर की वजह कालपट्टी का इस्तेमाल किया करते थे
- इन्हें गणित विषयों से ज्यादा लगाव था इसी कारण हुआ और सभी विषयों में फेल हो गया
- रामानुजन कभी कोई कॉलेज की डिग्री प्राप्त नहीं की फिर भी उन्हें काफी सारे प्रमेय को लिखा लिखो, उनमें से कुछ ऐसे परिमेय है जिन्हें उन्होंने सीधे नहीं कर पाया
- इंग्लैंड में हुए जातिवाद में श्रीनिवास रामानुजन गवाह बने थे
- 1729 नंबर जो हार्डी–रामानुजन नंबर के नाम से जाना जाता है
- 2014 में उनके जीवन पर आधारित एक तमिल फिल्म पढ़ाया गया जिस फिल्म का नाम था “रामानुजन का जीवन” है.
सूत्र(Formula)
रामानुजन के द्वारा प्रतिपादित के किए गए कुछ सूत्र
π के लिए भी उन्होंने एक सूत्र संपादित किया था.
रामानुजन संख्याएं
रामानुजन संख्या उस प्राकृत संख्या को कहा जाता है, जिसे दो अलग-अलग प्रकार से दो संख्याओं का दो संख्याओं के घनो का योग को निरूपित करता है.
अतः 1729, 4104, 20683, 39312, 40033 आदि यह सभी रामानुजन संख्याएं हैं।
डाक टिकट स्टीकर
हाल ही में श्रीनिवास रामानुजम के नाम और फोटो के साथ भारतीय डाक का टिकट लांच किया गया है
प्रमुख उपलब्धियां:-
- लैंडॉ-रामानुजन् स्थिरांक
- रामानुजन्-सोल्डनर स्थिरांक
- रामानुजन् थीटा फलन
- 1729 नंबर को हार्डी-रामानुजन नंबर
- रॉजर्स-रामानुजन् तत्समक
- रामानुजन् अभाज्य
- कृत्रिम थीटा फलन
- रामानुजन् योग
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