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मिल्खा सिंह भारत के सबसे प्रसिद्ध एक ऐसे पहले एथलीट धावक थे, जिन्होंने अपनी लाइफ में 80 दौड़ में भाग लिए, उस में से मात्र 3 दौड़ में उन्हे हर मिला और सभी में उनका जीत हुआ। वे अपने अद्वतीय प्रतिभा और अधिक रहतार से दौड़ने के कारण उन्होंने कई सारे रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया हैं और इनके आदित्य प्रतिभा के के कारण उन्हें “फ्लाइंग सिख” के नाम से लोग जानने लगे। जिन्होंने पहली बार कॉमनवेल्थ खेलो से हमारे देश भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले पहले वेक्ति थे। भारतीय खेल में आसमान योगदान के की लिए उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्म श्री से सम्मानित की गाय था।
मिल्खा सिंह जिस समय के सफल धावक थे जिस समय हमारे देश में खिलारियो के लिए कोई व्यवस्था नहीं था ना ही खिलाड़ियों के लिए ट्रेनिग की व्यवस्था थी। रोम आलोंपिक में मिल्खा सिंग इतने प्रसिद्ध हो गए थे की जब वे स्टेडियम में जाते था दर्शक उनको जॉस पूर्वक स्वगत करता। वहा की टॉप खिलाड़ी तो नही थे पर पर वह के टॉप धावकों में से एक जरूर थे। इनका लोकप्रिय होने का कारण दूसरा यह था की उनके लंबे बाल और दाढी था, उस समय सिख धर्म के बारे में कोई उतना नहीं जानता था, लोगो को लगता कोई साधु है जो इतना अच्छा दौड़ लगाता है।
फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह की जीवनी परिचय | Milkha Singh biography in Hindi
संक्षेप परिचय
नाम | मिल्खा सिंह |
उपनाम | फलाइंग सिख |
माता | ________ |
पिता | ________ |
जन्म | 20 नवम्बर 1929 |
जन्म स्थान | लायलपुर, पंजाब (पाकिस्तान) |
उम्र | 91वर्ष |
लंबाई | 178 सेंटीमीटर, 17.8 मीटर,5′ 10″ फीट |
वजन | 65 किलोग्राम |
पत्नी | निर्मल कौर |
बेटा/बेटी | बेटा-जीव मिल्खा, बेटी-सोनिया सांवला |
शौक | खेल दौड़ |
नागरिकता | भारतीय |
ग्रहीनगर | चंडीगढ़, |
भाषा | हिंदी (मातृभाषा) अंग्रेजी |
मिल्खा सिंह की प्रारंभिक जीवन (Milkha Singh’s Early Life)
हमारे देश अखंड भारत का विभाजन होने से पहले मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को पंजाब के लायलपुर में हुए था, जोकि वर्तमान में पाकिस्तान का एक भाग है। लेकिन कुछ दस्तावेजों के अनुसार उनका जन्म 17 अक्टूबर 1935 को बताया जाता है। उनके परिवार में कुल 17 सदस्य थे। माता-पिता और 15 भाई बहन थे। मिल्खा सिंह स्कूल की पढ़ाई के लिए घर से 10 किलोमीटर दूर पैदल जाते और घर आते थे। 1947 में भारत के विभाजन के बाद एक दंगे में मिल्खा सिंह ने अपनी माता पिता के साथ कई भाई बहनों को भी खो दिया।
उस समय वे मात्र 16 साल के थे उसके बाद वे ट्रेन पर चढ़ कर पाकिस्तान से दिल्ली यागए और दिल्ली में अपनी सादी सुदा बहन के यहां कुछ दिन तक रहे। उसके बाद दिल्ली के सहाद्रा इलाके की एक बस्ती में उन्होंने कुछ समय बिताए।
मिल्खा सिंह का करियर (Milkha Singh’s career)
मिल्खा के अपने भाई मलखान ने उन्हें भारतीय सेना में भर्ती लेने की सलाह दी। उसके बाद उन्हों ने 1 नही 3 बार कोशिश की पर असफल रहे।
चौथी बार वे सफल रहे और 1952 में उन्हें भारतीय सेना के विधुत मैकेनिकल इंजीनियरिंग में सामिल किया गया। एक दिन उनका मुलाकात शास्त्र बाल के कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह से हुए उन्होंने मिल्खा सिंह को रेसिंग का सलाह दिये। तभ से वे जोर सोर से करी मेहनत करने लगे।
वर्ष 1956 में पटियाला शहर में आयोजित राष्ट्रीय खेलों से उन्हें एक धावक के रूप में लोग जानने लगे। उसके बाद उन्होंने मेलृबोन्न ओलंपिक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 200 मी और 400 मी की रेस भाग लिए इसमें इनका प्रतिद्वंदी धावक चार्ल्स जेनकिंस था।और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई अनुभव न होने के कारण सफल न हो पाए, पर मिल्खा सिंह को भारत के धावक रूप में पहचान मिला था।
1958 को कार्डिफ, वेल्स, सयुक्त साम्राज्य में आयोजित कॉमनवेल्थ खेल के जीतने में जब उन्हें स्वर्ण पदक से सम्मान किया तब से वे पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध धावक के रूप में पहचान मिल गई थी। रोम आलोंपिक होने से पहले उन्होंने फ्रांस के दौड़ में 45.8 सेकंड का दौर रिकॉर्ड बनाए थे, इसलिए लोगो के मन में यह रहा मिल्खा सिंह रोम आलोंपिक का पदक जरूर जीतेंगे,पर इस 400 की आलोम्पिक के मिल्खा सिंह 250 मी की दूरी तक सबसे आगे रहे।
पर एक गलती के कारण उनके हाथों से मेडल छूट गाय। उन्होंने यह गलती के पीछे मुड़कर प्रतिद्वंदियो को देखने लगे जिसके कारण उनका गति सालो हो गया और प्रतिद्वंदी आगे निकल गया। जिसका पछतावा उन्हे जिंदगी भर रहा। मिल्खा सिंह काफी निराश हो गए और रोने लगे और वे सन्यास लेने का मन बना लिया फिर बहुत समझने के बाद वे मैदान में फिर वापस आए।
मिल्खा सिंह ने टोकियों एशियाई खेलों में 200 और 400 मीटर का दौड़ जीतकर भारतीय इथिलिट्स में एक नया रिकॉर्ड बनाकर इतिहास की रचना की। फिर अगला दिन मिल्खा सिंह का मुकाबला पाकिस्तान के अबदुल खालिक के साथ था। इस दौड़ में मिल्खा सिंह आगे थे पर फाइनिसिंग लाइन के 3 मीटर पहले उनके पैर का मांसपेश्या खीच गया और लड़खड़ा हुए फिनिसिंग लाइन तक पहुच गाए विजेता घोषित किया गया, और एशिया के सर्वश्रेष्ठ एथिलिटिक्स बने रहे।
उसके बाद मिल्खा सिंह ने खेल से संन्यास लिया और भारत में एक कोच के रूप के काम करने लगे। संन्यास लेने के बाद वे चांडीगर्दम रह रहे थे।
मिल्खा सिंह का वैवाहिक जीवन (Milkha Singh married life)
फ्लाइंग सिख के नाम से जानेजाने वाले मिल्खा सिंह और निर्मल कौर का मुलाकात 1955में हुआ जब भारतीय बॉलीवुड महिला टीम की कैप्टन थी। 1962 में मिल्खा सिंह और निर्मल कौर दोनो ने सादी कर ली। उनका एक बेटा और तीन बेटियां है बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है। 1999 में टाइगर हिल के युद्ध में एक शाहिद जवान का 7 साल की बेटी को उन्होंने गोद लिया।
मिल्खा सिंह का नाम फ्लाइंग सिख कैसे पड़ा (How was Milkha Singh’s name Flying Sikh?)
1960 में पाकिस्तान ने मिल्खा सिंह को एक दौड़ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन बचपन में हुई हादसा की वजह से वे पाकिस्तान फिर नहीं जाना चाहते थे पर पंडित जवाहर लाल नेहरू के कहने पर जाना पड़ा। इस दौड़ मुकाबले उनका मुकाबला एशिया के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिक से था। मिल्खा सिंह ने दौड़ में अपनी अब्दुल को बहुत सरलता पूर्वक हरा दिया।
पाकिस्तान के अधिकांस इस्लाम धर्म के दर्शक इनसे काफी प्रभावित हुआ और वह के बुर्कनशिन औरत भी मिल्खा सिंह को गुजरते देखने के लिए अपना नकाब उतार दी थी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खान ने उन्हें “फ्लाइंग सिख” नाम दिया।
मिल्खा सिंह का रिकॉर्ड और उपलव्दिया (Milkha Singh’s Record and Upalvadia)
मिल्खा सिंह ने 1957 में 400 मीटर की दौड़ को 47.5 सेकेंड में पूरा कर एक नई रिकॉर्ड बनाई।
1958 को जापान में आयोजित तीसरे टोकियो एशिया खेलो में 200 और 400 मीटर की दौर में उन्होंने दो नए रिकॉर्ड बनाए और गोल्ड मेडल जीते।
1958 में ब्रिटेन के कार्डिफ में हो रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता।
1959 में भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियां और अलग प्रतिभा के लिए उन्हें भारत के चौथे सर्वुच्च सम्मान पद्मश्री से समानित किया गाय।
1959 में मिल्खा सिंह इंडोनेशिया में हो रहे चौथे एशिया खेलो में उन्होंने 400 मीटर की दौड़ कर एक नया रिकॉर्ड बनाया और पूरी दुनिया में अपने राष्ट्र का कृतिमान स्थापित किया। उनका ये रिकॉर्ड 40 बाद जाकर टुट्टा था।
1962 में फिर दोबारा मिल्खा सिंह ने एशिया खेलो में गोल्ड मेडल जीत कर अपने देश का मन बढ़ाया।
2012 में जिस जूते को पहन कर रोम आलोंपिक में दौड़ लगाय थे उस जूते को मिल्खा सिंह ने एक चैरिटी संस्थान को नीलाम में दे दिया।
1 जुलाई 2012 को उन्हे भारत का सफल धावक की मान्यता दि गायी।
मिल्खा सिंह ने लगभग 20 पदक आपने नाम किया। जोकि की ये खुद अपनेअप में एक रिकॉर्ड हैं।
मिल्खा सिंह ने अपने जीते गए सभी पदको और मेडल को म्यूजियम में रखवा दी, ताकि देश के युवकों को मोटिवेशन मेले। पहले तो उनके मेडल और पदक को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में रखा गया था,फिर बाद में उसे पाटयाल के गेम्स म्यूजियम में सिफ्ट किया गाय।
मिल्खा सिंह का निधन(Milkha Singh death)
फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर इथिलियेट धावक मिल्खा सिंह का मृत्यु 18 जून 2021को रात 11 बजे पंजाब के चंडीगढ़ में हुआ था। बताया जाता है कि मिल्खा सिंह करोना से संक्रमण के कारण कुछ दिन तक हॉस्पिटल में थे, बाद में वह स्वस्थ भी होगे थे। वर्ष के मिल्खा सिंह का निधन करोना संक्रमण से हुए है। उसी सप्ताह में मिल्खा सिंह के मृत्यु से पहले उनकी पत्नी निर्मल कौर करोना के संक्रमण के कारण हुआ इसकी पुष्टि उनके बेटे ने किया था। मिल्खा सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया।
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