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तुलसीदास की जीवनी परिचय (Tulsidas Biography in Hindi)
संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction)
पूरा नाम | गोस्वामी तुलसीदास |
बचपन का नाम | राम बोला |
जन्म | 1511ईo से 1568 ईo ke बीच |
जन्म स्थान | सोरों शुक्रक्षत्र,कासगंज, उत्तरप्रदेश भारत |
माता | हुलसी देवी |
पिता | आत्माराम दुबे |
शिक्षा | संस्कृत व्याकरण, वेद, वेदांग ज्योतिस, दर्शनशास्त्र |
विवाह | रत्नावली |
बच्चा | तारक |
गुरु | नरहरीदास, शेषासनतन |
धर्म | हिंदू |
मैत्यु | 1629 को बनारस, भारत |
कथन | सीयराममय सब जाग जानी, करऊं प्रणम जोरी जग पानी (रामचरितमानस) |
कवि तुलसीदास का जन्म (Birth of great poet Tulsidas biography in hindi)
भारतीय महाकाव्य के रचेत तुलीदास का जन्म सोरो शुक्रक्षत्र, कासगंज,उत्तरप्रदेश भारत में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में प्रश्र गोत्र का सरुप्रेन ब्राह्मण परिवार में हुए था। उनका जन्म स्थान और जन्म तारीख में मतभेद है। उनके माता जी का नाम हुलसी और पिताजी का नाम आत्माराम था।
पंद्रह सौ चैवन विषै कालिंदी के तीर!
श्रावण सुक्त सप्तमी तुलसी घडरयौ शरीर!!
जैसा कि आप सभी लोगों पता ही होगा एक साधारण बच्चा अपनी मां की गर्भ में 9 महीने रहता है, पर तुलसीदास जी का जन्म 12 महीने पर हुआ था। जन्म से ही उनको 32 के 32 दांत था, और वे जन्म के समय रोए नहीं राम का नाम जप रहे थे। इसीलिए बचपन में इनका नाम रामबोला पर गया। इसके बारे में उन्होंने अपनी विनय पत्रिका में किए थे।
रामबोला का जन्म एक ऐसे नक्षत्र में हुआ था जैसे उनके पिताजी और उनके समाज वालों को उनसे खतरा था और उनके लिए यह भी भविष्यवाणी किया गया था, यह बच्चा ज्यादा दिन नहीं जिएगा अगर बच जाता है तो बहुत महान कार्य करेगा। इस भविष्यवाणी के कारण उनके समाज के लोग उन्हें मारने की साजिश करते रहते।
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तुलसीदास का प्रारंभिक जीवन (Early life of Tulsidas)
रामबोला की मां ने अपने बेटे को अपनी नौकरानी चुन्निया को दे दिया, और बोली से पहले कोई मेरे बेटे को मार डाले इससे पहले तो मेरे बेटे को यहां से दूर ले जाओ। कुछ साल तक तो ठीक रहा पर जब वे 5 साल के थे तब चुननिया की मृत्यु हो गयी। रामबोला अनाथ हो गया और उनके पिता जी भी उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया।
ऐसा खा जाता ही की उनका पालन पोषण माता पार्वती और भगवान शिव ने खुद की। फिर 5 साल बाद रामबोला का नरहरीदास ने उन्हें अपने कुटिया में लेया। उनके प्रारंभिक शिक्षा और पालन-पोषण नरहरिदास के कुटिया में ही हुआ। और इन्होंने ही रामबोला से बदलकर उनका नाम तुलसीदास रखे थे।
तुलसीदास का प्रारंभिक शिक्षा (Tulsidas’ Elementary Education)
नरहरी दास जी रोज अयोध्या में नदी के किनारे उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ रामायण भी सुनाया करते थे, उस समय इन्हें जरा भी रामायण सुनने में दिलचस्पी नहीं था, फिर बाद में धीरे धीरे सुनने में उन्हें मन लगने लगा। उसके बाद वे बनारस चले आए और वहां पर गुरु शेषा सनातन से बनारस के गंगा नदी तट संस्कृत व्याकरण, वेद, वेदांग ज्योतिष और भारतीय दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। और तुलसीदास जी 15 से 16 वर्ष बनारस में ही बिताये।
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तुलसीदास और रत्नावली का विवाह (Tulsidas and Ratnavali’s marriage)
तुलसीदास जी उसके बाद पढ़ाते थे और लोगों को रामायण की कथा सुनाते थे। जिसे सुनने के लिए कई सारे संत और ब्राह्मण आते थे उन्हीं में से एक ब्राह्मण था जिनका नाम दीनबंधु था। तुलसीदास की इतना अत्याधिक ज्ञान, बुद्धिमता और तेज देखकर काफी प्रभावित हुए। और उन्होंने अपनी पुत्री रत्नावली से शादी करने का प्रस्ताव रखा। और वे स्वीकार कर लिया। और ब्राह्मण दीनबंधु की पुत्री रत्नावली से 1526 में उन्होंने शादी कर ली।
तुलसीदास अपनी पत्नी रत्नावली से वह इतना प्यार करते थे की उसे एक क्षण के लिए भी अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते थे। एक बार उनकी पत्नी उन्हें बिना कहे अपने मायके चली जाती है, संध्या का समय था तुलसीदास जी अलग-बलग खोजने पर किसी से पता चला उनकी पत्नी अपनी माइके चली गई है।
तुलसीदास जी अपने पत्नी को इतना प्रेम करते थे की रात्रि के समय था और तूफानी बारिश हो रही थी फिर भी वे अपनी पत्नी के मायके की ओर निकल पड़े। रास्ते में एक नदी मिला जिसे पार करने के लिए उन्होंने एक लहस का सहारा लिए। जब उनकी पत्नी रत्नावली ने उन्हें देखा तो गुस्सा हो गई और बोली।
इसका अर्थ यह है:-जीतना प्रेम आप हड्डी और मांस से बने शरीर से करते है, उसका आधा भी आप भगवान श्री राम से करते तो भाव सागर भी पर हो जाते!
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तुलसीदास जी भगवान राम की खोज में (Tulsidas ji in search of Lord Ram)
तुलसीदास को उनकी पत्नी का बात इतना गहरा असर डाला की तभी से वे भगवान राम की खोज में निकल पड़े। भगवान राम की खोज में उन्होंने अयोध्या, चित्रकूट, रामेश्वरम, परयाग, हिमालय, मांस्रोवर तक पूरे भारत वर्ष का भ्रमण किया पर भगवान राम कही नही मिले। अन्त में वे बनारस पहुंच और प्रातः स्नान करने जाते तो उन्हे रास्ते में एक पेड़ मिलता स्नान करने के बाद रोज उसमे पानी डालते थे।
उस पेड़ पर एक प्रेत रहता था, प्रेत तो पानी के प्यासे होते है इसलिए वो काफी प्रसन्न हुआ। और बोला तुम किया मांगना चाहते हो, तुलसीदास जी ने कहा कि हमें भगवान राम से मिला दो। प्रेत ने कहा मैं तो नहीं मिला सकता पर उनसे मिलने का दे सकता हूं, प्रेत ने कहा कि उनका प्रेम भक्त हनुमान है जो तुम्हें भगवान राम से मिला सकता है। उन्होंने कहा कि हम उन्हें पहचानेंगे किसी। प्रेत ने कहा कि राम कथा सुनने के लिए जो सबसे पहले लाचार रोगी वृद्धा व्यक्ति आएगा और कथा खत्म होने के सबसे बाद जो जाएगा वही होंगे हनुमान जी।
तुलसीदास से भगवान राम का दर्शन (Lord Rama’s Darshan from Tulsidas)
जैसा प्रीत ने कहा था वैसा ही हुआ तो तुलसीदास जी कथा खत्म होने के बाद उस वृद्ध रोगी लाचार वेक्ती के पीछे पीछे चलने लगे और कहे कि हम आपको पहचान गया हूं, तब हनुमान जी ने असली रूप में आकर उन्हें बताया कि तुम चित्रकूट जाओ वही भगवान राम मिलेंगे। तुलसीदास जी चित्रकूट आए राजघाट के एक आश्रम में रहने लगे। पहली बार भगवान राम उनके सामने एक सुंदर युवक राजकुमार के रूप में आए पर वे पहचान नहीं पाए। दूसरी बार एक बच्चे के रूप में आए, तुलसीदास जी को बच्चे ने बोला कि मुझे भी चंदन का लेप लगा दो, तुलसीदास उस बच्चे को देखते ही पहचान गए यही भगवान राम है और उनके चरणों में गिर पड़े तो भगवान राम ने उनके सिर पर चंदन का लेप लगाएं।
तुलसीदास द्वारा रामचरित्रमानस की रचना(The composition of Ramcharitmanas by Tulsidas)
1628 में हनुमान जी की आज्ञा लेकर चित्रकूट से चल पड़े। उस समय प्रयाग में माघ मेला लगा हुआ था, वहा पर कुछ दिन रहे। छः दिन बाद उन्हें एक वटवृक्ष के नीचे याज्ञवल्क्य ऋषि और भारद्वाज से मुलाकात हुआ। माघ मेला समाप्त होने के बाद तुलसीदास जी फिर बनारस लौट आए। गंगा नदी के किनारे प्रहलाद घाट पर एक ब्राह्मण के घर में रहने लगे और वही से पघ की रचना करना आरंभ किए।
तुलसीदास जी दिन में जितने भी पघ की रचना करते हैं, रात्रि में सब मिट जाता। इसी तरह 7–8 दिन चला। फिर एक दिन साथ में उन्हें रात्रि में भगवान शिव जी का दर्शन हुआ, उन्होंने आदेश दिया कि तुम अयोध्या जाकर रहो और तुम अपनी भाषा में ही काव्य का रचना करो। भगवान शिव जी की आदेशानुसार वे बनारस से अयोध्या आ गए और वहीं पर काव्य की रचना करने लगे।
1631 शुरुआती में रामनवमी के दिन वैसा ही समय आया जैसा भगवान राम के जन्म के दिन त्रेतायुग में था। उसी दिन के प्रातः काल से श्री राम चरित्र मानस की रचना करने का शुभारंभ किए। उसके बाद 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन के बाद यह अद्भुत महाकाव्य ग्रंथ 1633को भगवान राम और माता सीता के विवाह के दिन जाकर सातों कांड पूर्ण हुआ।
इसके बाद बनारस चले गए, वहां के कई संतों और ब्राह्मणों को अपनी श्रीरामचरितमानस की कथा सुनाई, वहां के ब्राह्मण और संतों ने काव्य को मानने से इंकार कर दिया। और उनसे ऐसा करने के लगे। और उस पुस्तक को चुराने के लिए दो चोर को भेजा। चोर चोरी करने गया तो देखा कि उनके कुटिया का देखभाल दो धनुष यज्ञ एक शामला और दूसरा गोरा वेक्त कर रहा है उसे देख कर उसका बुद्धि शुद्ध हो गया और तब से चोरी करना छोड़ दिए।
तुलसीदास जी को पता चला कि हमारे लिए भगवान श्री राम जी को भी कष्ट हो रहा है तो उन्होंने अपनी कुटिया के सारे सामान लौटा दिया और पुस्तक को अपने मित्र डोरामल के यहां रखवा दिया। एक तरफ ब्राह्मणों को कोई उपाय नहीं दिख रहा था उन्हें गलत साबित करने के लिए तो वे बनारस के महान पंडित श्री मधुसूदन सरस्वती के पास पुस्तक लेकर गए, पुस्तक की जांच कराने के लिए। मधुसूदन जी उसे पढ़ने के बाद काफी प्रसन्न हुए और उस पर अपनी ओर से उन्होंने यह बोले।
फिर भी ब्राह्मणों ने स्वीकार नहीं किया। इस पुस्तक की जॉच करने के लिए रात्रि में इस पुस्तक को सभी वेद और सस्त्रो के नीचे विश्वनाथ मंदिर में रख दिया गया। जब सुबह में मंदिर का पट खुला तो श्रीरामचरितमानस पुस्तक सभी पुस्तकों के ऊपर रखा था और उस पर लिखा हुआ था सत्यम शिवम सुंदरम जिसे भगवान शिव जी लिखे थे, और सत्यम शिवम सुंदरम आवाज को वहा के सभी लोगो ने सुना था। बनारस के सभी ब्राह्मण लज्जित होकर उनके पैरों पर गिर पड़े और माफी मांगने लगे।
तुलशिदास की रचनाएं(creations of Tulsidas)
रचनाएं | वर्ष | रचनाकार |
---|---|---|
रामचरित्रमानस | 1574 ईo | तुलसीदास |
हनुमान बाहुक | ________ | तुलसीदास |
गीतावली | 1571 ईo | तुलसीदास |
कृष्ण गीतावली | 1571 ईo | तुलसीदास |
हनुमान चालीसा | ________ | तुलसीदास |
संकट मोचन | ________ | तुलसीदास |
पार्वती मंगल | 1582 ईo | तुलसीदास |
राम शलाक | ________ | तुलसीदास |
विनय पत्रिका | 1582 ईo | तुलसीदास |
जानकी मंगल | 1582 ईo | तुलसीदास |
झूलना | _______ | तुलसीदास |
कलीधर्माधर्म निरूपण | _______ | तुलसीदास |
रामललानहधु | 1582 ईo | तुलसीदास |
दोहावली | 1583 ईo | तुलसीदास |
वैराग्य संदीपनी | 1612 ईo | तुलसीदास |
रामाज्ञापश्न | 1612 ईo | तुलसीदास |
सतसई | 1612 ईo | तुलसीदास |
बरवै रामायण | 1612 ईo | तुलसीदास |
कवितावली | 1612 ईo | तुलसीदास |
छंदावली रामायण | _______ | तुलसीदास |
कुंडलियां रामायण | _______ | तुलसीदास |
करखा रामायण | _______ | तुलसीदास |
रोला रामायण | _______ | तुलसीदास |
छप्पय रामायण | _______ | तुलसीदास |
कवित्त रामायण | _______ | तुलसीदास |
महाकाव्य रचेता तुलसीदास की मृत्यु (Death of Tulsidas, the author of the epic)
तुलसी दास बहुत लंबे समय से बीमार रहने के कारण तुलसीदास जी बनारस के गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट में 1623 को उनका मृत्यु हो गया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले अंतिम पत्री विनय पत्रिका अस्सी घाट पर ही लिखे थे।
निष्कर्ष:-
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