बिहार कोकिला शारदा सिंह की जीवनी | Sharda Sinha

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Sharda Sinha Biography in Hindi

भारतीय लोक संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाली सुप्रसिद्ध गायिका शारदा सिन्हा(Sharda Sinha) का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उन्हें उनकी मधुर आवाज, भावपूर्ण गायकी और बिहार की संस्कृति को विश्व पटल पर पहुंचाने के लिए जाना जाता है। शारदा सिन्हा को “बिहार कोकिला” की उपाधि दी गई है और उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, हिंदी जैसी भाषाओं में सैकड़ों लोकप्रिय गीतों को अपनी आवाज़ दी है।

शारदा सिन्हा का जीवनी परिचय | Sharda Singh Biography in Hindi

पूरा नामशारदा सिन्हा
उपनामबिहार कोकिला
जन्मतिथि1 अक्टूबर 1952
निधन4 नवंबर 2024
जन्म स्थानहुलास, राघोपुर, सुपौल जिला, मिथिला क्षेत्र, बिहार
गृह नगरहुलास, राघोपुर, सुपौल जिला, मिथिला क्षेत्र, बिहार
राष्ट्रीयताभारतीय
धर्महिंदू
जातिब्राह्मण
व्यवसायलोक गायिका
भाषाएँमैथिली, भोजपुरी, हिंदी
लंबाईलगभग 1.52 मीटर
वजनलगभग 70 किलोग्राम
आंखों का रंगकाला (अनुमानित)
बालों का रंगकाला (अनुमानित)
शैक्षिक योग्यताB.A., B.Ed., संगीत में डिग्री
शिक्षा संस्थानबांकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल, मगध महिला कॉलेज, प्रयाग संगीत समिति
शौक/अभिरुचिगीत गाना, लिखना, नृत्य करना
प्रथम बॉलीवुड गीत“काहे तोसे सजना” – फिल्म: मैंने प्यार किया (1989)
वैवाहिक स्थितिविवाहित

शारदा सिन्हा का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा | Sharda Sinha Early life & Education

शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुलास गांव, राघोपुर, सुपौल जिला, बिहार के मिथिला क्षेत्र में हुआ था। उनका परिवार शिक्षित और समृद्ध था। उनके पिता सुखदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। बचपन से ही शारदा को संगीत और नृत्य का गहरा शौक था।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल, पटना से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मगध महिला कॉलेज, बिहार से उच्च शिक्षा प्राप्त की और फिर प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से संगीत में विशेष शिक्षा ली। इसके अलावा उन्होंने समस्तीपुर शिक्षण महाविद्यालय से B.Ed. की डिग्री भी हासिल की।

शारदा सिन्हा का परिवार | Sharda Singh Family

पितासुखदेव ठाकुर (शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी)
मातानाम ज्ञात नहीं
पतिडॉ. ब्रज किशोर सिन्हा
बेटा/बेटीअंशुमन सिन्हा / वंदना सिंह
भाई/बहनजानकारी उपलब्ध नहीं
धर्महिंदू
जातिब्राह्मण
गृह नगरहुलास, राघोपुर, सुपौल जिला, मिथिला क्षेत्र, बिहार

शारदा सिंह की संगीत करियर करियर की शुरुआत | Beginning of Sharda Singh music career

शारदा सिन्हा के संगीत करियर की शुरुआत एक दिलचस्प घटना से हुई। एक बार वे स्कूल में अपनी सहेलियों के साथ गीत गा रही थीं, तभी उनके शिक्षक हरी उप्पल ने उनकी आवाज़ सुनी और मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने शारदा को प्रधानाचार्य के कार्यालय में बुलाया और उनके गीत को टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड किया। यही पल उनकी संगीत यात्रा की नींव बना।

शारदा को अपने करियर में परिवार का भरपूर सहयोग मिला। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और आगे चलकर मणिपुरी नृत्य में भी पारंगत हो गईं।

शारदा सिंह का बॉलीवुड में प्रवेश | Sharda Singh entry in Bollywood

शारदा सिन्हा ने 1989 में बॉलीवुड फिल्म “मैंने प्यार किया” में गायिका के रूप में काम किया। इस फिल्म के गीत “काहे तोसे सजना” को लोगों ने खूब पसंद किया। इस गीत के लिए उन्हें मात्र 216 रुपए मिले थे, लेकिन इस गीत ने उन्हें देशभर में प्रसिद्ध कर दिया।

इसके बाद उन्होंने कई लोकप्रिय फिल्मों में गाया, जिनमें गैंग्स ऑफ वासेपुर का गीत “तार बिजली से पतले हमारे पिया” विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने न केवल लोकगीतों में बल्कि भजन, ग़ज़ल और सुगम संगीत की विधाओं में भी अपना परचम लहराया।

शारदा सिंह का प्रसिद्धि और सम्मान | Sharda Singh Fame and Honors

शारदा सिन्हा को उनके अतुलनीय योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:

  • 1991 – भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार
  • 2001संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • 2015बिहार सरकार द्वारा सिनेयात्रा पुरस्कार
  • 2018 – भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार

इन पुरस्कारों ने उनके योगदान को न केवल मान्यता दी, बल्कि उन्हें देशभर में प्रेरणा का स्रोत बना दिया।

शारदा सिंह का व्यक्तिगत जीवन | Sharda Sinha Personal Life

शारदा सिन्हा का विवाह डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा से हुआ है, जो एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद हैं। उनके बेटे का नाम अंशुमन सिन्हा है। वे एक सरल जीवन जीती हैं और संगीत को ही अपना जीवन मानती हैं।

वे हिंदू धर्म की अनुयायी हैं और जाति से ब्राह्मण हैं। उन्हें गीत गाना, लिखना और नृत्य करना बेहद पसंद है। शारदा सिन्हा धूम्रपान और शराब से दूर रहती हैं और एक अनुशासित जीवनशैली अपनाती हैं।

शारदा सिंह की रोचक जानकारियाँ | Sharda Sinha interesting fact

  • शारदा सिन्हा को बचपन से ही मंच पर प्रस्तुति देने का शौक था।
  • उन्होंने पहली बार 1965 में स्वतंत्रता दिवस पर सार्वजनिक मंच पर गायन किया था।
  • वे बिहार विधानसभा चुनाव 2009 में ब्रांड एंबेसडर भी रहीं।
  • शारदा सिन्हा ने बिहार की लोकसंस्कृति को सहेजने में अभूतपूर्व योगदान दिया है।

बिहार की लोक संस्कृति की सच्ची प्रतिनिधि

शारदा सिन्हा को बिहार की आत्मा की आवाज़ कहा जा सकता है। उन्होंने छठ गीतों को देशभर में लोकप्रिय बनाया। उनका गाया हुआ “कांची हे छठी मइया” और “पाली ओ निरगुन रे” जैसे गीत आज भी हर छठ पूजा में गूंजते हैं।

उनकी आवाज़ में एक विशेष मिठास और गहराई है, जो सीधे श्रोता के दिल को छू जाती है। वे आज भी बिहार और मिथिला की लोकपरंपराओं को जीवित रखने में लगी हुई हैं।

निष्कर्ष

शारदा सिन्हा न केवल एक गायिका हैं, बल्कि वे एक संस्कृति की संवाहक हैं। उनकी आवाज़ में वो जादू है जो हर दिल को बाँध लेती है। उन्होंने लोकसंगीत को नई पहचान दी और बिहार को संगीत के नक्शे पर विशेष स्थान दिलाया।

उनकी जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि यदि प्रतिभा हो और परिवार का सहयोग मिले, तो कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार कर सकता है।

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