एक सच्चे योद्धा की अमर कहानी कैप्टन अंशुमान सिंह की जीवनी |Captin Anshuman Singh Biography in Hindi

Anshuman Singh Biography: भारतीय सेना का इतिहास वीरता, बलिदान और साहस की अनगिनत कहानियों से भरा पड़ा है। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है कैप्टन अंशुमान सिंह की, जिन्होंने सियाचिन जैसे दुर्गम क्षेत्र में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनके इसी साहसिक कार्य के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया। यह सम्मान न केवल उनके कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।

अंशुमान सिंह का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा |Anshuman Singh Early Life & Education Qualification

कैप्टन अंशुमान सिंह उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के लार थाना क्षेत्र के बरडीहा दलपत गांव से ताल्लुक रखते थे। उनका परिवार वर्तमान में लखनऊ में रहता है। वे बचपन से ही मेधावी, अनुशासित और जिम्मेदार स्वभाव के थे। शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका प्रदर्शन हमेशा उत्कृष्ट रहा। अंशुमान का सपना था कि वे अपने देश की सेवा करें और उन्होंने इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए थे।

अंशुमान ने आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज (AFMC), पुणे से पढ़ाई की। यह कॉलेज देश के सबसे प्रतिष्ठित सैन्य मेडिकल संस्थानों में से एक है, और यहां चयनित होना ही एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। यहीं से उन्होंने मेडिकल ऑफिसर के रूप में अपनी सैन्य यात्रा शुरू की।

कैप्टन अंशुमान सिंह प्रेम कहानी | Anshuman Singh Love story

अंशुमान सिंह की जिंदगी सिर्फ वीरता की कहानी नहीं, बल्कि इसमें एक खूबसूरत प्रेम कहानी भी शामिल है। उनकी पत्नी स्मृति सिंह से मुलाकात इंजीनियरिंग कॉलेज के पहले दिन हुई थी। बाद में अंशुमान AFMC में चयनित हो गए और दोनों की राहें कुछ समय के लिए अलग हो गईं, लेकिन उनका रिश्ता आठ सालों तक बना रहा। इन वर्षों में दूरियां थीं, लेकिन दिलों का जुड़ाव अटूट था। अंततः फरवरी 2023 में दोनों ने शादी कर ली।

शादी के महज पांच महीने बाद ही अंशुमान की पोस्टिंग सियाचिन ग्लेशियर में हुई, और यहीं से उनके जीवन की सबसे निर्णायक यात्रा शुरू हुई।

अंशुमान सिंह का सियाचिन युद्ध में अहम भूमिका |Anshuman Singh Important role in Siachen war

सियाचिन, जिसे दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र कहा जाता है, वहां रहना और काम करना किसी भी सैनिक के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है। जुलाई 2023 में कैप्टन अंशुमान सिंह की तैनाती 26वीं पंजाब रेजीमेंट की 403 फील्ड अस्पताल यूनिट में रेजिमेंटल मेडिकल ऑफिसर के रूप में हुई। उनका कार्यक्षेत्र समुद्र तल से लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित था, जहां ऑक्सीजन की कमी, अत्यधिक ठंड और बर्फीले तूफान जैसी विषम परिस्थितियां सामान्य बात हैं।

19 जुलाई 2023 की सुबह लगभग साढ़े तीन बजे एक भयावह हादसा हुआ। एक शॉर्ट सर्किट के कारण गोला-बारूद बंकर में आग लग गई, जिसने पास के टेंटों को भी अपनी चपेट में ले लिया। उस समय शिविर में कई सैनिक मौजूद थे। आग इतनी भीषण थी कि वहाँ फंसे सैनिकों की जान खतरे में पड़ गई। ऐसी विकट परिस्थिति में कैप्टन अंशुमान सिंह ने बिना अपनी जान की परवाह किए बचाव कार्य शुरू किया।

उन्होंने अपने अद्वितीय साहस और मानवता का परिचय देते हुए तीन से चार जवानों को आग की लपटों से बाहर निकाला। परंतु, इस बचाव कार्य के दौरान वे खुद बुरी तरह झुलस गए। उन्हें तत्काल एयरलिफ्ट करके चंडीगढ़ के सैन्य अस्पताल लाया गया, लेकिन गंभीर रूप से झुलसने के कारण उन्हें बचाया नहीं जा सका और वे वीरगति को प्राप्त हो गए।

कैप्टन अंशुमान सिंह को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित | Anshuman Singh Awarded the Kirti Chakra posthumously

कैप्टन अंशुमान सिंह की इस अभूतपूर्व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के दूसरे सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया। यह सम्मान 2024 में राष्ट्रपति भवन में आयोजित रक्षा अलंकरण समारोह में दिया गया। यह पुरस्कार उनकी पत्नी स्मृति सिंह और मां मंजू सिंह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से प्राप्त किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी उपस्थित थे।

जब स्मृति सिंह ने राष्ट्रपति से यह सम्मान ग्रहण किया, तो पूरा देश भावुक हो गया। एक वायरल वीडियो में स्मृति को हाथ जोड़कर अपने पति की बहादुरी के लिए सम्मानित होते हुए देखा गया, जिसकी आंखों में गर्व और पीड़ा दोनों साफ झलक रही थी। उन्होंने कहा था – “अंशुमान अक्सर कहते थे कि मैं अपने सीने पर गोली खाकर मरना चाहता हूं, मैं आम आदमी की तरह नहीं मरना चाहता जिसे कोई जान ही न पाए।”

कैप्टन अंशुमान सिंह एक अमर प्रेरणा | Captain Anshuman Singh is an immortal inspiration

कैप्टन अंशुमान सिंह की कहानी सिर्फ एक सैनिक की वीरता की गाथा नहीं, बल्कि यह एक इंसान की जिम्मेदारी, प्रेम, सेवा भावना और बलिदान की मिसाल भी है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक सच्चा सैनिक अपने कर्तव्य के आगे किसी भी परिस्थिति में नहीं झुकता।

उनकी पत्नी स्मृति ने बताया कि शहादत से एक दिन पहले यानी 18 जुलाई को उनकी लंबी बातचीत हुई थी, जिसमें उन्होंने अपने भविष्य के सपनों – अपना घर, बच्चे और जीवन की योजनाओं की चर्चा की थी। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। 19 जुलाई को उन्हें वह कॉल आई जिसे कोई भी पत्नी कभी नहीं सुनना चाहेगी – “कैप्टन अंशुमान सिंह शहीद हो गए।”

निष्कर्ष

कैप्टन अंशुमान सिंह की वीरता की यह गाथा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक जीवंत प्रेरणा है। उनके बलिदान ने यह दिखाया कि देशभक्ति सिर्फ शब्दों में नहीं, कर्मों में झलकती है। उनकी शहादत ने सियाचिन के बर्फीले मैदानों में एक ऐसी कहानी लिख दी है, जो युगों-युगों तक भारतीय जनमानस में जीवित रहेगी।

अंशुमान सिंह जैसे वीर सपूतों के कारण ही भारत आज सुरक्षित है। उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वह न केवल देवरिया जिले, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव हैं। उनकी स्मृति को शत-शत नमन।

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